कभी कभी सोचता हुँ••••••••
इन बेबस बेसहारों को कौन सुलाता होगा
कौन इस नन्ही सी जान को दुलारता होगा
भूख लगने पर किसको ये पुकारता होगा
किसको कहता होगा अपने दर्द सारे
कभी कभी सोचता हुँ••••••••
दर बदर भटक कर रोटियाँ कम ,
गलिया ही ज़्यादा खाता होगा !
अपने आँसू से ही ,
अपनी भूख और प्यास मिटाता होगा !!
कभी कभी सोचता हुँ••••••••
खिलौनो से खेलने की उम्र में
आँसुओ से खेलने की इनकी उम्र तो नहीं
इतनी सी उम्र में ,
इतनी जिम्मेदारियाँ उठाने की इनकी उम्र तो नहीं
कभी कभी सोचता हुँ••••••••
कैसे दया नहीं आती किसी को इनपर
क्यों कोई इनको नहीं अपनाता
क्यों इनको मरने के लिए छोड़ देते हैं
अपने चन्द ख़ुशियों के लिए
कभी कभी सोचता हुँ••••••••
क्या ख़ुदा सच मुच हैं धरती पर
अगर हैं तो क्यों बेसहारा हैं कोई
क्यों इनको भटकता हुवा छोड़ गया कोई
क्यों इनकी आँखे नम रहती हैं