आँखों मे ये खौफ़नाक मंज़र क्यूँ हैं
पता नहीं इंसान इतना कंजर क्यूँ हैं
खुद बोता हैं बीज़ जहर के , फिर रोता क्यूँ हैं
काटकर पेड़ को ज़मी से कहता हैं , ये धरती बंज़र क्यूँ हैं
आँखों मे ये खौफ़नाक मंज़र क्यूँ हैं .......!!
कर के खिलवाड़ श्रीष्ठी से , यूँ दुबकता क्यूँ हैं
कहता था तू फर्क नहीं पड़ता , फिर लिए तूफान अंदर क्यों हैं
आँखों मे ये खौफ़नाक मंज़र क्यूँ हैं .......!!
हद से ज्यादा प्यार नहीं , तो हद से ज्यादा ये नफरत क्यूँ हैं
खुद छोड़े तूने तेरे सारे रास्ते , फिर लिए खड़ा समंदर क्यूँ हैं
आँखों मे ये खौफ़नाक मंज़र क्यूँ हैं.......!!
पता नहीं इंसान इतना कंजर क्यूँ हैं
खुद बोता हैं बीज़ जहर के , फिर रोता क्यूँ हैं
काटकर पेड़ को ज़मी से कहता हैं , ये धरती बंज़र क्यूँ हैं
आँखों मे ये खौफ़नाक मंज़र क्यूँ हैं .......!!
कर के खिलवाड़ श्रीष्ठी से , यूँ दुबकता क्यूँ हैं
कहता था तू फर्क नहीं पड़ता , फिर लिए तूफान अंदर क्यों हैं
आँखों मे ये खौफ़नाक मंज़र क्यूँ हैं .......!!
हद से ज्यादा प्यार नहीं , तो हद से ज्यादा ये नफरत क्यूँ हैं
खुद छोड़े तूने तेरे सारे रास्ते , फिर लिए खड़ा समंदर क्यूँ हैं
आँखों मे ये खौफ़नाक मंज़र क्यूँ हैं.......!!
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