क़िस्मत का लिखा मिटाने चले हो
क्यों अपना दिल जलाने चले हो
रातों को जागकर कोई बिछड़ा मिलता नहीं
क्यों दिल को ऐसे झूठ से बहलाने चले हो
झूठे सपने झूठे वादे झूठी मोहब्बत
क्यों इनपर अपना सब कुछ लुटाने चले हो
उनकी यादों में अपना क्या हाल बना रक्खा हैं
क्यों खुद को खुद से ऐसे मिटाने चले हो
प्यार ने सिसक सिसक कर रोने के सिव दिया क्या
क्यों फिर से ख़ुद को इस जाल में फ़साने चले हो