Sunday, 27 October 2024

 दिल में लिए यादों का समंदर 

होठों पर उनके तराने लिए तू बस गीत नए कुछ छोड़ 


प्यार वफ़ा वादे खो गए हैं कही , तू चल उनको खोज 

राहे हैं बड़ी बेवफ़ा उनकी , ओमकार तू ख़ुद को उस और न मोड़ 


लूटा दे ज़िंदगी अब उनपर जो तेरे हैं , दूसरो की अब तू चिंता छोड़ 

लिख कोई अब नए धड़कते तराने , ये चुप्पी अब तोड़ 


देख यहाँ जो तेरे अपने हैं , वो बुला रहे कर कर के शोर 

मिला ले आँसुओ से आंसू दोस्तों के , फिर कोई नग़मे नए तू जोड़ 


#स्वयं_रचित_ओमकार 

#Copyright_Omkar

@highlight


Monday, 1 August 2022

एक नई ड़ोर हुँ मैं

 जो करते हैं पसंद उन्हें सलाम 

नो नहीं करते उन्हें भी सलाम 
दुश्मनों को भी गले लगाते 
यहाँ नफ़रतों का क्या काम 
हमने तो मह्फ़िल में 
खुलकर दिल तोल दिए 
करते है जो अनदेखा 
उनसे भी हँसकर बोल दिए 
ऐसा नहीं के क़मज़ोर हुँ मैं 
एक नया भोर हुँ मैं 
इंसानियत की 

एक नई ड़ोर हुँ मैं 

Friday, 3 June 2022

मानो गे यहाँ किसको तुम ख़ुदा ! यहाँ एक नहीं , सब के कई यार हैं !!

 यहाँ प्यार नहीं , धोखों का बाज़ार हैं !

इश्क़ के नाम पर , होता बस व्यापार हैं !! 


विपक्ष में बैठे रहते हैं उनके दिल में कई और भी !

यहाँ बदलती रहती रोज़ उनकी सरकार हैं !! 



मानो गे यहाँ किसको तुम ख़ुदा !

यहाँ एक नहीं , सब के कई यार हैं !! 


पता ही नहीं चल पता कभी !

धोखे में हम हैं , या धोखे से प्यार हैं !! 


करो जिसपर यहाँ भरोसा ,

उसी के हाथों होता , यहाँ दिल तार तार हैं !! 

Saturday, 7 May 2022

जहां जहां रखता हुँ कदम माँ तु वहीं हैं


एक तेरे बिन कौन यहाँ पूरा हैं 

माँ तेरे बिन सब अधूरा हैं 

सुनी धरती सुना आसमाँ 

सुना ये घर संसार हमारा हैं 


चेहरे पर मुस्कान और पीछे आँसू छुपाना तेरा 

खुद भूखे रहकर मुझे खिलाना तेरा 

चोट लगने पर वो मरहम लगाना तेरा 

मस्ती करने पर वो मारना तेरा 


याद आती हैं तेरी हर बाते 

कहाँ गुजरती हैं बिन तेरे रातें 

माँ तुझसा कोई नहीं 

कोई तो ये रब को बता दे 


अब नहीं होती सुबह वैसी 

न होती रात वैसी 

न होता हैं चूल्हा वैसा 

न होती हैं रसोई में महक वैसी 


कौन जागता अब मुझको 

थक कर यूँही सो जाता हुँ 

दर्द से कराहता हैं बदन मेरा 

पर न जाने क्यों सुबह ठीक हो जाता हुँ 

 

माँ तु सच मुच जादूगर हैं 

तु नहीं हैं फिर भी यहीं कहीं हैं 

यादों में बाते में दर्द में धूप में 

जहां जहां रखता हुँ कदम माँ तु वहीं हैं

Monday, 2 May 2022

छूट गया हैं जो पल पीछे उसे बुलाऊँ कैसे ! रात बड़ी तनहा हैं उसे भुलाऊँ कैसे !!

 छूट गया हैं जो पल पीछे उसे बुलाऊँ कैसे !

रात बड़ी तनहा हैं उसे भुलाऊँ कैसे !! 


भटक रहा हैं जो इर्द-गिर्द , उसे सम्भालूँ कैसे !

राह बड़ी अंज़ान , मैं खुद को राह दिखाऊँ कैसे !! 


ज़ख़्म देने वाले को  मैं गले लगाऊँ कैसे !

यादों का मंजर हैं सामने खड़ा , मैं उसे भगाऊँ कैसे 


जल रहा जो आग दिल में  मैं खुद को उसमें जलाऊ कैसे !

दूसरों के ख़ातिर , मैं खुद को सताऊँ कैसे !!



Saturday, 16 April 2022

ग़म के सागर में डूब कर तु क्या पाएगा !


 ग़म के सागर में डूब कर तु क्या पाएगा !

ऐसे ही रहा तो एक दिन खुद के आंसुओं में डूब जाएगा !!


तैरना भी तो आता नहीं तुझे दुनिया के सागर में !

भटक गया जो इस सागर में , तो कैसे इसपार आएगा !!


मत कर भरोसा इन चंद पल के रिश्तों पर !

वरना देखना एक दिन तु इनसे ही धोखा खाएगा !! 


किसी एक के लिए अपनो को छोड़ने वालों !

अगर अपने ही खो गए , तो कहाँ से उनको ढूँढ के लाएगा !! 

Wednesday, 13 April 2022

कभी कभी सोचता हुँ••••••••

 कभी कभी सोचता हुँ••••••••

इन बेबस बेसहारों को कौन सुलाता होगा 

कौन इस नन्ही सी जान को दुलारता होगा 

भूख लगने पर किसको ये पुकारता होगा 

किसको कहता होगा अपने दर्द सारे 



कभी कभी सोचता हुँ••••••••

दर बदर भटक कर रोटियाँ कम ,

गलिया ही ज़्यादा खाता होगा ! 

अपने आँसू से ही ,

अपनी भूख और प्यास मिटाता होगा  !! 


कभी कभी सोचता हुँ••••••••

खिलौनो से खेलने की उम्र में 

आँसुओ से खेलने की इनकी उम्र तो नहीं 

इतनी सी उम्र में ,

इतनी जिम्मेदारियाँ उठाने की इनकी उम्र तो नहीं 


कभी कभी सोचता हुँ••••••••

कैसे दया नहीं आती किसी को इनपर 

क्यों कोई इनको नहीं अपनाता 

क्यों इनको मरने के लिए छोड़ देते हैं 

अपने चन्द ख़ुशियों के लिए 


कभी कभी सोचता हुँ••••••••

क्या ख़ुदा सच मुच हैं धरती पर 

अगर हैं तो क्यों बेसहारा हैं कोई

क्यों इनको भटकता हुवा छोड़ गया कोई 

क्यों इनकी आँखे नम रहती हैं