कोई ये लिखता है कोई वो लिखता हैं ,
मैं तो अपनी कलम से यारो सनम लिखता हू !
मुझसे न पूछो मेरा ये हाल दोस्तों ,
मैं कुछ न बोलकर बहोत कुछ लिखता हू !
थक जाता हु जब जमाने के जुल्मो सितम से ,
तब अपनी ही जुबा ये कलम लिखता हू !
बहोत देखे इन आँखों ने जुल्म जमाने में ,
उन जुल्मो की दस्ताने कलम लिखता हू !
जो कोई मिले उसे अपना बना लेता हू ,
मैं अपनी नहीं आपकी ज़ुबा लिखता हूँ !
जो भूखा मिले उसे दो रोटी खिला देता हू ,
मैं उन मासूमों के ख़्वाबों का महेल लिखता हू !
जो राह भटके उसे राह दिखा देता हू ,
मैं उन भटके राहियों की मंजिल लिखता हू !
जो मिला मुझे उसमे मैं खुश रहता हू ,
मैं तो यारों दुश्मनो के लिए भी दुवा लिखता हू !
जो भी आये शब्द उसे मैं पिरो देता हू ,
अपनी ही कलम से अपनी बर्बादी लिखता हू !
बहक जाते है जो लोग दुनिया की भीड़ में ,
उनको समझाने फिर दास्ताने कलम लिखता हू !
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