बेवफ़ाई की कुछ हवा चली ऐसे ,
के यार बेवफ़ा हों गए !
जिनसे उम्मीद लगाई थी हमने ,
उन्हीं से आहत हो गए !
मैं हु ना मैं हु ना कहे के ,
अल्लाह हाफ़िज़ कहे गए !
जिनसे बंधी थी डोर मेरी ,
आज वहीं कहीं खो गए !
मेरा क्या क़सूर था ,
हमें हीं क्यों लूटकर चले गए !
तुमसे थी रोशनी मेरी दुनिया ,
तुम्हीं अंधियारा कर गए !
हमने तुम्हें समझा था खुदा ,
तुमने हमें समझा बेवफ़ा !
अपनी अपनी लाइफ़ बोलकर ,
आप हमें बेग़ाना कर गए !
आप जहा भी रहेना ख़ुश रहेना ,
उस खुदा से मेरी यहीं ईल्तिजा हैं !
हम तो लकीर के फ़क़ीर हैं ,
हम यूँही बे मौत मरते हैं !
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