बेदर्दी से बहेनो की इज़्ज़त लूटती रही ।
दूर खड़ी सरकार , तमाशा देखती रही ।।
"घर" "स्कूल" "दफ्तरों" में नारिया सिसकती रहीं ।
हर युग में नारी जुल्म सहती रही ।।
कौन देगा सहारा जब घर मे हीं लुटेरे हैं ।
अपनो के ही हाथों ये बार बार मरती रही ।।
दहेज़ के नाम पर ये बिकती रहीं ।
सर दीवारों से ये रोज फोड़ती रहीं ।।
हैवानियत के जाल में फसती रहीं ।
कर भरोसा ये सदा ही रोती रहीं ।।
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