एक तेरा दरबार हैं सच्चा मईया ,
बाकि सब माया जाल हैं तेरा !
कौन हैं अपना कौन पराया ,
एक तेरा ही रूप हैं सच्चा मईया !
मुश्किलो में भी हैं साथ तेरा ,
हर मंजिल में हैं रूप तेरा !
जहा भी जाऊ तुझे पुकारू ,
हर जनम तेरे ही शरण आऊ !
और तेरे दरबार में आकर मैं ,
सदा ही अपना शीश झुकाऊँ !
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