Tuesday, 3 May 2016

मुझको लूटा सब ने जिसकी जितनी थी औक़ात , मैं खड़ा तमाशा देखते और वो मंद मंद मुसकाय !

मुझको लूटा सब ने जिसकी जितनी थी औक़ात ,
मैं खड़ा तमाशा देखते और वो मंद मंद मुसकाय !

एक मुद्दत हूवा तुमसे किए हुवे बात ,
ये आँखे अब भी करती हैं बस तेरा इंतज़ार !

सपने मुझे दिखाकर फिर कहीं छुप जाए ,
सावन आया भादव आया पर वो नहीं आए !

ये मनुवा बड़ा पागल खड़ा उन्ही के राह ,
वो बावरी ऐसी गई मिला न कोई उसका थाह !

ढूँढु मैं तुझको कहा कहा कुछ मुझे समझ न आए ,
मैं हूवा तेरी याद में बावरा मुझे कोई राह नज़र न आए !

मेरे इस प्यार की अभी नहीं कोई तुझे थाह ,
जब कोई तेरा दिल तोड़े तब तुझे समझ में आए !

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