मौसम बेवफाई का फिज़ाओ में घुलने लगा हैं ।
टूटकर डाली से पत्ता बिछड़ने लगा हैं ।।
सच्चाई की यहाँ कोई मूरत नहीं ।
सब के दिलों में एक झूठ पलने लगा हैं ।।
यहाँ किसी को किसी की कद्र नहीं ।
सब के मन मे पाप पनपने लगा हैं ।।
चला हैं ऐसा चलन प्यार का ।
की कोई कहीं और संवरने लगा हैं ।।
संभाले भी कोई किसी तरह खुद को ।
अपना ही कोई अपना होने से मुकरने लगा हैं ।।
टूटकर डाली से पत्ता बिछड़ने लगा हैं ।।
सच्चाई की यहाँ कोई मूरत नहीं ।
सब के दिलों में एक झूठ पलने लगा हैं ।।
यहाँ किसी को किसी की कद्र नहीं ।
सब के मन मे पाप पनपने लगा हैं ।।
चला हैं ऐसा चलन प्यार का ।
की कोई कहीं और संवरने लगा हैं ।।
संभाले भी कोई किसी तरह खुद को ।
अपना ही कोई अपना होने से मुकरने लगा हैं ।।
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