Tuesday, 19 April 2016

उनकी हर बद्दुआ को हम दुआ समझते रहे गए , हम अपनी ही बर्बादी पर जश्न मानते रहे गए !

उसने माँगी थी मौत मेरी इस लिए हम गुज़र गए ,
हम अपने प्यार के ख़ातिर मौत से लड़ गए !

उनके दिए हुवे जहेर को हम अमृत समझकर पी गए ,
हम अपनी मौत का ख़ुद तमाशा देखते रहे गए !

उनको बिठाकर ऊँचाई पे हम ख़ुद नीचे गिर गए ,
क्या बताऊँ यारों हम उनकी चाहत में क्या क्या कर गए !

उनकी हर बेवफ़ाई को हम वफ़ा समझते रहे गए ,
एक बेवफ़ा से दिल लगाकर हम जीते जी मर गए !

उनकी हर बद्दुआ को हम दुआ समझते रहे गए ,
हम अपनी ही बर्बादी पर जश्न मानते रहे गए !

No comments:

Post a Comment