Monday, 4 January 2016

(( ये कविता पठानकोट और देश के नाम ))

देखा दुश्मन तो तान के सीना मैदा में उतर आए ,
मर मिटे तिरंगे पर न तनिक क़दम डगमगाए !
पठानकोट हो या हो कोई भी सीमा रेखा ,
बस उन्होंने यहीं सोचा तिरंगा न झुकने पाए !

गले लगाकर फिर सर क़लम कर देना ,
यहीं दुश्मनों की असली चाल हैं !
हर दम ही चुपके से वार किया ,
फिर भी उन्नहि से बढ़ा रहे हम दोस्ती का हाँथ हैं !

इस देश को आज नेताओं ने शर्मसार कर डाला हैं  ,
ख़त्म करने के बदले दुश्मनों के सर पर उन्होंने हाँथ घुमाया हैं !
अपने इस करतूत पर हँस रहा वो पाकिस्तान ,
और रो रहा आज सारा हिंदुस्तान हैं !

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