Friday, 22 January 2016

ये सर्द हैं या तुम्हारी ठंडी आँहें

ये सर्द हैं या तुम्हारी ठंडी आँहें ,
ये रात हैं या तुम्हारी ज़ुल्फ़ों के साये !
भर देता हैं सिहरन तेरा हुस्न और ये सर्द ,
अब तूही बता जाना हम कैसे तुम बिन जिए !


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