Tuesday, 5 January 2016

रात ढलने वाली हैं

        रात ढलने वाली हैं ,
       ये चाँद छुपने वाले हैं !
         दिल में छुपी हैं तू ,
    तो नींद कैसे आने वाली हैं !
      ये रात बहेकने वालीं हैं ,
    ये फ़िज़ा खिलने वाली हैं !
       बीत न जाए ये रात ,
      तु कब आने वालीं हैं !
      ये मौसम तुम्हें बुला रहें ,
       ये तारे टिम टिमा रहें !
     ये चमक चमक कर सनम ,
     बस तुझी को ये बुला रहें !
     लगता है जैसे हम सनम ,
     जनम जनम के बिछड़े हैं 
     आज जो हम तड़पे हैं ,
सच में हम तेरे लिए बहोत रोते हैं !


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