उस पार हैं सवेरा ,
यूँही गोते लगाता जा !
अपनो की चाह में ,
तूफ़ानो से टकराता जा !
हर ज़ुल्म को यूँही तू सहेता जा ,
हैं घनघोर अँधेरा यूँही तू चलता जा !
सुख की हैं चाह तो ,
दुःख में भी मुस्कुराता जा !
कोई नहीं तेरे साथ यहाँ ,
साये को दोस्त बनाता जा !
मंज़िल तेरी अभी दूर नहीं ,
क़दम पे क़दम बढ़ाता जा !
फिर होगा रौशन जहाँ ,
हौसलों की उड़ान भरता जा !
मंज़िल की चाह हैं तो ,
काँटो पे राह बनाता जा !
गर बन्ना चाहों इंसान तो ,
भूखों को रोटी खिलाता जा !
लेना हैं अपनो से ज्ञान तो ,
अपना सर झुकता जा !
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