Friday, 29 January 2016

नारी व अत्याचार

हर राह हर गली में नारी पर ज़ुल्म होता हैं ,
जहाँ देखो वहीं बस अत्याचार होता हैं !
मारी सिटी खिंचा दुपट्टा ,
फिर इज़्ज़त उनका तार तार होता हैं !

क्यों नहीं समझते हुस्न जब बे पर्दा होता हैं ,
तभी आग लगने का डर होता हैं !
मत छेड़ो राह चलते उनको ,
इन्ही में माँ काली का रूप बसता हैं !

बन गई ये काली माँ तो ,
फिर अंतिम छःण तेरा दूर नहीं !
सोच विचार ले तु अब भी ,
ये कोई अबला नारी नहीं !

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