Thursday, 3 March 2016

बस एक ग़लती पर , वो हमसे रूठ कर चले गए !

बस एक ग़लती पर ,
वो हमसे रूठ कर चले गए !
मैंने की किसी और को कविता ,
वो उसपर रूठ कर चले गए !
उनसे क्या अब बतलाऊँ मैं ,
अपनी बे गुनाही कैसे सामने लाऊँ मैं !
हमने की किसी और पर कविता तो ,
वो हमें अल्लाह हाफ़िज़ कर के चले गए !
इस जनम में मिलने को रहे ,
वो हमको ऐसा कुछ कहे गए !
एक सच्चे आशिक़ का ,
दिल वो काँच की तरह तोड़ गए !

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