Wednesday, 30 March 2016

धीरे धीरे चल ज़िंदगी ,

धीरे धीरे चल ज़िंदगी ,
कुछ फ़र्ज़ निभाना अभी बाक़ी हैं !
रूठे हैं जो उनके होंठों पर ,
अभी मुस्कान लाना बाक़ी हैं !
कुछ काम अभी ज़रूरी हैं ,
उनको निपटान बाक़ी हैं !
मेरे हर आसुओं का ,
अभी हिसाब लेना बाक़ी हैं !
बचे हैं कुछ अरमान अभी ,
उनको  दफ़नाना अभी बाक़ी हैं !
इन साँसों पर हक़ हैं जिनका ,
उनका क़र्ज़ चुकाना अभी बाक़ी हैं !

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