बाहों में सनम और खुला आसमान था !
थे गेसु बिखरे जैसे कोई बादल ,
और बदन लग रहा कोई शबनम का क़तरा !
थी बिखरी ख़ुशबू तेरे साँसों की इन वादियों में ,
धड़कन थमा थमा सा इन वादियों का था !
बिखरी थी कोहरे कि चादर ,
उसपर उफ़ वो तेरे पायल का छनकना !
हर क़दम पर हर एक सुर बजते हैं ,
चलती हैं तु जैसे कल कल नादियाँ !
सूरज भी तुझसे रोशनी चुराता ,
बदन जैसे आसमान का टुकड़ा !
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