Wednesday, 2 March 2016

हमसे पूछो मत वो रात का मंज़र क्या था

हमसे पूछो मत वो रात का मंज़र क्या था ,

बाहों में सनम और खुला आसमान था !

थे गेसु बिखरे जैसे कोई बादल ,

और बदन लग रहा कोई शबनम का क़तरा !

थी बिखरी ख़ुशबू तेरे साँसों की इन वादियों में ,

धड़कन थमा थमा सा इन वादियों का था !

बिखरी थी कोहरे कि चादर ,

उसपर उफ़ वो तेरे पायल का छनकना !

हर क़दम पर हर एक सुर बजते हैं ,

चलती हैं तु जैसे कल कल नादियाँ !

सूरज भी तुझसे रोशनी चुराता ,

बदन जैसे आसमान का टुकड़ा !

No comments:

Post a Comment