समाज के ठेकेदारों ने ,
क्या ख़ूब रंग दिखलाया है !
ग़रीबों को लूटकर ,
ख़ुद का जेब भरवाया है !
वहा एक निवाला खाने को नहीं ,
पल पल मर रहा इंसान हैं !
यहाँ भरी पड़ी तिजोरी गोदाम सारे ,
पर देने की नियत नहीं हैं !
बेशर्मियत का ये नंघा नाच ,
सरे आम खेला जाता हैं !
अपना रक्षक ही आज ,
भक्षक बनकर बैठा हैं !
देते हैं एक हाथ से ,
लेते हैं ये दो हाथ से !
बच के रहना भाई ,
समाज के ठेकेदार से !
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