भरते थे जो दम दोस्ती का ,
आज सामने उनकी औक़ात आ गई !
मेरी इस तन्हाई में ,
तू और तेरी मुस्कान याद आ गई !
न सावन आया न बदली छाई ,
फिर ये कैसे बात हो गई !
बिन बोले इस मौसम में ,
आँसू वो की बरसात हो गई !
कोई पत्ता साबुत बचा नहीं शाखाओं में ,
कुछ यूँ उनकी हमसे बात हो गई !
हमको मेरे हम ने लूटा ,
कहा उनकी इतनी औक़ात हो गई !
नदी नाले मिलने को तरसते हैं ,
कहा इतनी आज बरसात हो गई !
मैं तो ख़ुद डूबा अपने ही आँसू वो में ,
कहा समुन्दर की इतनी औक़ात हो गई !
No comments:
Post a Comment