Wednesday, 17 February 2016

क़िस्से सबको हमारी सुनाती हैं वो

अपने हर दर्द को छुपाकर मुस्कुराती हैं वो ,
अपनी आदत से बाज़ नहीं आती हैं वो !

पूछ लेती हैं हर राज मेरा मुझसे ,
अपनी हर बात छुपाती हैं वो !

अपनी हँसीं में तूफ़ानो को छुपाती हैं वो ,
न जाने कैसे मुझे किनारे लगाती हैं वो !

आप ख़ुद तो बड़ी चलाखा हैं मगर ,
क़िस्से सब को हमारी सुनाती हैं वो !

No comments:

Post a Comment