लाज एक गहना हैं ,
तन ढक कर चल ओ गोरी !
शर्मो हया का बंधन हैं ,
यूँ तन खोल न ओ गोरी !
समय बड़ा विचित्र हैं ,
यूँ न मटक ओ गोरी !
तड़क भड़क में खोना ना ,
ख़ुशियों से यूँ मुँह मोड़ना ना !
फ़ैशन के इस आडंबर से ,
जलते कुछ लोग हैं !
इंसान के रूप में ,
वो भेड़िए हैं सारे लोग !
देखते हीं अर्ध नग्न बदन को ,
बहेक जाते हैं कुछ लोग !
मेरी मानो तो माँ बहेनो ,
छोड़ दो ये सारे सोंग !
कपड़ों के फ़ैशन को छोड़ ,
फ़ैशन करों दिमाग़ का !
कर के तुम बुद्धि को तेज़ ,
करो तुम नाम रोशन भारत का !
Writer :- ॐTiwari
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