पत्थर को पूजते हो इंसा को लतीयाते हो ,
धर्म पुण्य के नाम पर क्या ख़ूब पाप फैलाते हो !
पत्थर को उठाकर ज़मी से भगवान बनाते हो ,
अपने ही माँ बाप को कितना रूलाते हो !
पत्थर को भेंट चढाकर दान वीर कहेलाते हो ,
रात के अँधियारे में बड़ा पाप फैलाते हो !
पत्थर को भोग लगाकर पकवान चढ़ाते हो ,
एक रोटी की ख़ातिर हमें कितना तरसाते हो !
खुदा करे कल तुम्हारा भी यही अंजाम हो ,
इसी रोटी के ख़ातिर कल तु भी निलाम हो !
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