हो सके तो रूठो को मना लो ,
यूँ ही ख़फ़ा होने से क्या रक्खा है !
हँसते गाते मौज मानलो ,
यूँ ही मर मर के जीने में क्या रक्खा है !
चन्द रोज की जिंदगानी है ,
यूँही ब्यर्थ गवांने में क्या रक्खा है !
कितना सुंदर है ये जहाँ ,
यूँ जान गवाने में क्या रक्खा है !
प्यार तो है खुदा का नाम
यूँ ही बदनाम करने में क्या रक्खा है
ये लडकिया हैं अपनी ही माँ बहने
इनकी इज्जत लूटने में क्या रक्खा है
जिन्हें पूजते हो देवी समान
उन्ही को लूटने में क्या रक्खा है
होगा एक दिन तेरे भी कर्मो का लेखा जोखा ,
यूँ अकड़ कर चलने में क्या रख्खा है !
अपने कर्मो का फल यही पाओगे ,
मरकर सीधे ही नर्क लोक जाओगे !
अब भी सम्भल जाओ देश के नव जवानो ,
यूँ झूठ का साथ देने में क्या रख्खा है !
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