सावन की घटा जो छाने लगी ,
वो मचलकर और पास आने लगी ,
बारिश में भीगकर वो यू इठलाने लगी ,
इठलाकर हमें तरसाने लगी ,
जो तन पे गिरी बूँदे तो वो ,
ख़ुद को भुलाकर हममें समाने लगी !
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