Saturday 15 August 2015

यही हैं हिंदुस्तान

देश के खातिर अपनी जान पे खेल गए ,
वही शुर वीर थे जो मरकर भी जी गए ,
कल रात उन्ही के बच्चों को भूख से रोते देखा ,
और बस यही सोचा क्या यही हैं हिंदुस्तान !

जो देश के खातिर मर मिटे  ,
कल उसी के माँ को मैं रोते देखा ,
पाई पाई के लिए उसे हाथ फैलाते देखा ,
और यही सोचा क्या यही हैं हिंदुस्तान !

शहीदों की बीवी को रोज मरते देखा ,
बच्चो के खातिर उसको मैंने ,
कौड़ियो के दाम बाजार में बिकते देखा ,
और यही सोचा क्या यही हैं हिंदुस्तान !

ये मंजर देखकर उसकी आत्मा कितनी तड़पी होगी ,
जिस देश के खातिर वो कुर्बान हो गया ,
वो पैसो के बाजार आज कही खो गया ,
और बचा बस यही झूठा हिंदुस्तान ,
सच बोलिए क्या यही हैं हिंदुस्तान !

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