Thursday 5 December 2019

वो मेरी ही परछाई थी

कोई नहीं हमराही
नज़र हैं बस भरमाई
दूर दूर तक यादों का सागर
और साथ चली परछाई.........
कुछ दूर लोग साथ चले तो थे
लेकर हाथोँ में हाथ बढ़े तो थे
वख्त बदला लोग बदले
हिस्से मेरे जब तन्हाई आई थी
बचा एक यादों का बादल
और टूटी साथ चारपाई थी
घर भी था सुना सुना
जब सुनी उसकी कलाई थी
खुशियों का आंगन नहीं
आँसुओ की बरसात थी
मेरे साथ साथ चली
वो मेरी ही परछाई थी..........


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