हर जगह फैली हुई रात की स्याही ,
ऐसे में मुझे फिर तेरी याद आइ !
जब जब आसमान में चाँद नज़र आया ,
तब तब उस चाँद में मुझे तेरी सूरत नज़र आइ !
जब भी कश लगाकर सोचा तेरे बारे में ,
हर उड़ते धुएँ में मुझे तेरी सूरत नज़र आइ !
चलो ये भी माना तुम मुझे नहीं चाहती ,
फिर तुझमें मेरी झलक क्यों नज़र आइ !
तेरे दिल में मैं नहीं बसता ये भी माना ,
फिर क्यूँ तेरी आँखो में आज मेरी सूरत नज़र आइ !
No comments:
Post a Comment