Sunday 3 April 2016

क्या ख़ूब तमाशा करते हैं वो क्या ख़ूब तमाशा करते हैं !

बेवफ़ाई करके वो वफ़ा की बातें करते हैं ,
क्या ख़ूब तमाशा करते हैं वो क्या ख़ूब तमाशा करते हैं !

ख़ुद घाव देकर मरहम लगाने आते हैं ,
बिखरी हुई छांव में धूप दे जाते हैं !

न जाने क्यूँ वो बहेकी बहेकी बातें करते हैं ,
सामने मंज़िल हैं और जुदाई की बातें करते हैं !
क्या ख़ूब तमाशा करते हैं वो........

दिल तोड़कर मेरा फिर हसने को कहते हैं ,
बहारों के मौसम में पतझड़ की बातें करते हैं !

ख़ुद बेवफ़ा होकर हमें बेवफ़ा कहते हैं ,
जले हुवे चरागो को बुझाने की बातें करते हैं !
क्या ख़ूब तमाशा करते हैं वो........

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