Friday 29 April 2016

मंज़िल हैं अभी तेरी दूर ज़रा सम्भल कर चल , हर क़दम पर हैं काँटे तेरे राही ज़रा सम्भल कर चल !

मंज़िल हैं अभी तेरी दूर ज़रा सम्भल कर चल ,
हर क़दम पर हैं काँटे तेरे राही ज़रा सम्भल कर चल !

सफ़र हैं दूर पथ में हैं काँटे ज़रा सम्भल कर चल ,
नहीं रहेता यूँ सदा अँधेरा राही ज़रा सम्भल चल !

देगा नहीं यहाँ कोई तेरा साथ ज़रा सम्भल कर चल ,
आनेवाला हैं नया सबेरा राही ज़रा सम्भल कर चल !

ये दर्द ये दुःख नहीं रहेता सदा ज़रा सम्भल कर चल ,
आने को नई ख़ुशियाँ राही ज़रा सम्भल कर चल !

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