देते हैं पैसे का लालच ,
फिर वतन लुटवाते हैं !
आज कुछ अपने ही भाई बंधू ,
कांवड़ियों के दाम बिकते हैं !
पीते हैं जिस माँ का दूध ये ,
उसिका ये स्तन नोचते हैं !
हर नुक्कड़ हर गली में ,
खड़े हुवे ये कुत्ते मिलते हैं !
लूट कर अपनी हीं माँ को ,
दुश्मन के तलवे चाटते हैं !
जो किसी का हो ही न सका ,
उसी पैसे के पीछे ये भागते हैं !
चंद पैसों के ख़ातिर ये ,
सारा खेल रचते हैं !
जिस थाली में खाते हैं ,
उसी में ये छेद करते हैं !
इंसा के रूप में ये ,
भेड़िए का दिल रखते हैं !
आज भारत के लाल हीं ,
अपनी माँ को बेचते हैं !
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