Wednesday 27 January 2016

मैं और तेरी परछाईं हैं

मैं मेरी क़लम और तेरी परछाईं हैं ,
तु नहीं तो सनम तरी याद हीं चली आइ हैं !
तु मुझसे दूर मैं तुझसे दूर ,
और कोई नहीं साथ मैं और तेरी परछाईं हैं 

ये ग़ज़ल ये शाम और तु याद आइ हैं ,
हर लफ़्ज़ हैं रूठे रूठे हर तरफ़ तन्हाई हैं !
तु नहीं तो मैं नहीं मैं नहीं तो तु नहीं ,
दूर तक हैं ख़ामोशी मैं और तेरी परछाईं हैं !

हर राह हैं सुना सुना हर जगह अँधियारा हैं ,
रोशनी चुभती हैं शूल सा अँधियारा बड़ा हीं प्यार हैं ,
बिन तेरे उजड़ा मेरा संसार ,
कोई न अब साथी मैं और तेरी परछाईं हैं !

हर दिन हैं बुझा बुझा हर हर रात सिर्फ़ तन्हाई हैं ,
सावन भी भाता नहीं हर मौसम हरजाई हैं !
बिन तेरे मैं भी न जी पाउँगा ,
इस जहाँ में बस मैं और तेरी परछाईं हैं !


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