Thursday 4 February 2016

कब ओपन कब हमें तु ब्लॉक कर देती हैं

तकलीफ़ बातें नहीं तेरी अदाए देती हैं ,
मेरे हर जवाब पर फिर तु नया सवाल देती हैं !
पता हीं नहीं चलता बातों ही बातों में ,
कब ओपन कब हमें तु ब्लॉक कर देती हैं !

कहेने को तु मेरी दोस्त हैं ,
पर तु बड़ी शरारत करती हैं !
बिन बात के अक्सर ,
मुझे हीं तु फँसाती हैं !

बात अच्छी हो तो कोई बात नहीं ,
पर अक्सर बुरी बात हीं करती हैं !
किन किन नाम से पुकारू तुझे ,
तु अक्सर ही फ़ेक आइड़ी से बात करती हैं !

इसको पकड़ा उसको छोड़ ,
उसको पकड़ा इसको छोड़ा !
कब किसको पकड़ा किस को छोड़ा ,
बस इसी उल्लझन में तु हमें फँसाती हैं !

न जाने क्यूँ अक्सर हीं हमें ,
ये लड़कियाँ फँसाती हैं !
हमसे भी अच्छा कोई मिल जाए तो ,
फिर हमें रास्ते से हटाती हैं !

No comments:

Post a Comment