प्यार की नगरी में क़दम ज़रा बढ़ाकर देख लो ,
अपना होश किसी पर तुम भी गँवाकर देख लो !
बाँहों में उनके समाकर कभी देख लो ,
होंठों से होंठ ज़रा सटाकर देख लो !
कैसे बहकते हैं क़दम किसी के ,
तपते फूलों के पंखुड़ियों को ज़रा चूमकर देख लो !
देखना चाहो हुस्न की आग तो ,
कभी उनके अधरों को छूकर देख लो !
होश उनके भी खो जाएँगे ,
ज़रा पैरों को सहेलाकर देख लो !
होती हैं क्या भूख चाहत की लोगों ,
चाहें तो तपते बदन पर अधरों को रखकर देख लो !
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