Sunday 15 March 2015

बस मेरी राहो से जुदा थी उनकी राहे

कभी महेबूब् तो कभी सनम बन कर ,
वो सदा याद आती मेरा अतीत बनकर ,
वो सर्दी की राते वो बारिश की बाते ,
वो माथे से टपकता पसीना ,
मुश्किल हुवा था मेरा जीना ,
कुछ ख़ामोशी में सिमटी राते ,
कुछ हँसी में टाल दी आहे ,
सब कुछ पाकर भी कुछ न पाया ,
बस मेरी राहो से जुदा थी उनकी राहे !

No comments:

Post a Comment