Tuesday 6 October 2015

सुना हैं तेरी हुस्न गजल बन गई हैं , उन गजलों की मैं अब महफ़िल ढूंढता हूँ !

तेरी चाहत में मैं हुआ दिवाना ,
अब उस चाहत की वफ़ा ढूंढता हूँ !

तेरी बाँहों में हमने जो लम्हें गुजारे ,
उन लम्हों में तेरा वजूद ढूंढता हूँ !

तेरे होंठो का रस वो मस्त ,
बदन की खुशबू मैं अब तक ढूंढता हूँ !

तेरे संग बिताए जो रातें हमने ,
मैं अब तक रातो को तेरा निशा ढूंढता हूँ !

सुना हैं तेरी हुस्न गजल बन गई हैं ,
उन गजलों की मैं अब महफ़िल ढूंढता हूँ !

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