Tuesday 6 October 2015

हमको मेरे हम ने लूटा कहा उनकी इतनी औक़ात हो गई

भरते थे जो दम दोस्ती का ,

आज सामने उनकी औक़ात आ गई !

मेरी इस तन्हाई में ,

तू और तेरी मुस्कान याद आ गई !

न सावन आया न बदली छाई ,

फिर ये कैसे बात हो गई !

बिन बोले इस मौसम में ,

आँसू वो की बरसात हो गई !

कोई पत्ता साबुत बचा नहीं शाखाओं में ,

कुछ यूँ उनकी हमसे बात हो गई !

हमको मेरे हम ने लूटा ,

कहा उनकी इतनी औक़ात हो गई !

नदी नाले मिलने को तरसते हैं ,

कहा इतनी आज बरसात हो गई !

मैं तो ख़ुद डूबा अपने ही आँसू वो में ,

कहा समुन्दर की इतनी औक़ात हो गई !

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