Wednesday 7 October 2015

बहेका हैं मौसम बहेका हैं मन बहेकी ये सारी फिज़ाएँ ऐसे मौसम में कहीं तुम न आजाना

बहेका हैं मौसम बहेका हैं मन
बहेकी ये सारी फिज़ाएँ
ऐसे मौसम में कहीं तुम न आजाना

ए रात मदहोश तुमको बुला रही हैं
ये चाँद सितारे तेरे झलक को तरस रहे हैं
हम तो बहेक चुके हैं
कही तुम न बहक जाना

बहेका हैं मौसम....

ए मौसम तुम हमे यू न बहेकाओ
बहेकाकर उनको यूँ न बुलाओ
न आना तुम सनम यहा पर
कही हम तुम बहेक न जाए

बहेका हैं मौसम....

अभी तो सम्भल चुके हैं
उस पल का क्या भरोसा
देखो वो फूल खिल रहे हैं
कही तुम भी खिल न जाना
थोड़ी देर जरा ठहर जाओ
अभी मौसम हैं दिवाना

बहेका हैं मौसम....

ये रात ढल रही हैं
वो सूरज निकल रहा हैं
जाते हुवे लम्हे
तुमको ही ढूंढ ते हैं
डर हैं कही तुम न आजाओ
बहेका हैं ए दिवाना

बहेका हैं मौसम....

आज कहे रहा हू
फिर न ये कहूँगा
कब तलक खुद को
यू रोके रहूँगा
आजाओ अब तो जिवन में
तुझसे ही मेरा आशियाना

बहेका हैं मौसम....

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