Wednesday 7 October 2015

अपना तो टुटा सारा दोस्ताना , रिश्तों को अब तमाशा देखने की मोहलत मिल गई होगी !

अपना तो टुटा सारा दोस्ताना ,
रिश्तों को अब तमाशा देखने की मोहलत मिल गई होगी !
एक लिखना ही कुसूर हैं तो शायद रिश्तों ,
अब तेरे भी लिखने पर तोहमत लग गई होगी !

मेरे कलम में जो मेरे दोस्तों की तस्वीर नजर आती थी ,
शायद रिश्तों वो तुझे अब नजर नही आती होगी !
टुटा अपना ये दोस्ताना सारा ,
उन रिश्तों को अब चैन की नींद मिल गई होगी !

रिश्तों की डोर को हम निभाते चले गए ,
दोस्तों की नजर में हम गिरते चले गए !
कौन सा था वो रिश्ता ये हमको भी न पता चला ,
शायद इसलिए वो रिश्ते हमपर ही हँसते चले गए !

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