एक पल का भी प्यार तूने दिया नहीं ज़िंदगी ,
मैं बहोत सोई तुझसे बिछड़ने के बाद !
होता हैं क्या जीना मरना कोई तो बता दे ,
मिला न जवाब मैं सब से पूछती रहे गई !
ख़ुशियों की तलाश में मैं भटकती रहे गई ,
मिली न ख़ुशी तो तन्हाई बटोरती रहे गई !
इस जहाँ में कठपुतली बन कर रहे गई ,
ज़ालिम समाज की बस प्यास बनकर रहे गई !
आज हर नारी की बस यहीं हैं कहानी ,
लोगों के आँखो की वो भूख बनकर रहे गई !
ये नींद कब टूटे गी क्या ख़बर ,
मैं बस प्यार की चाह में तरसती रहे गई !
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