दिखती हों तुम फूलों की गुड़िया ,
पर हो तुम एक आफत की पुड़िया !
मधु जैसा हैं हुस्न तुम्हारा ,
पर दिमाग से थोड़ा पैदल हो !
दिल्लगी के नाम पर तुम ,
सदा ही खुर्चालिया करती हो !
प्यार जताकर सदा ही तुम ,
सबका दिल तोड़ती हो !
चलती हो जब यूँ बलखाकर ,
कितनो को मार गिराती हो !
अपने इन्ही अदाओं से ,
तुम सबपर बिजली गिराती हों !
अपने इस नैनो की जाल से ,
प्रेम जाल बिछाती हो !
फिर थोड़ा सा पास बुलाकर ,
सदा ही सब को ठगती हो !
भोली भाली सूरत हैं तेरी ,
पर बड़ी शरारत करती हो !
मस्ती में तुम बिलकुल ,
सबकी नानी लगती हो !
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