Thursday 26 November 2015

ये क़लम

ये मेरी क़लम नहीं ,
तेरा ही एक रूप हैं !
इस स्याही के रूप में ,
तेरी आँखों का हर बूँद हैं !

लिख रहा हूँ जो आज मैं ,
तेरे हर सितम का जवाब हैं !
तू नहीं तो ये क़लम ही आज ,
ले रही सब का इम्तिहान हैं !

बोल रही जो क़लम मेरी ,
तेरे ही दर्द का एक साया हैं !
बता रहीं इस ज़माने ने ,
कैसे कैसे तुमपर सितम ढाया हैं !

मेरे क़लम को दोष न देना ,
दोष ये तेरी आँखों का हैं !
इसने तो लिखा बस वहीं ,
जो दिखा तेरी आँखों में हैं !

दिल का ये खेल ,
क़लम तक पहुँच जाता हैं !
बिन बोले ही कुछ ,
काग़ज़ पर उतर आता हैं !

ये क़लम हैं मेरी प्रियतमा ,
ये काग़ज़ हैं मेरी साँसें !
कभी न जुदा करना मुझसे ,
अब तूही हैं ज़िन्दगी मेरी !

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