सच्चाई की राह चलते ,
अब कोई नज़र नहीं आता !
घोर अँधियारे बड़ा ,
कहीं रोशनी नज़र नहीं आता !
दीप जलाए खड़ा हूँ ,
कोई राह नज़र नहीं आता !
साया भी अब साथ छोड़ने लगा ,
तो वो अंतिम घड़ी नज़र क्यों नहीं आता !
आज इंसान यहाँ ,
इंसान के काम नहीं आता !
पड़े मुश्किल में जो ,
कोई किनारा नज़र नहीं आता !
कहाँ जाऊँ किसे पुकारू ,
कोई हमराज़ नज़र नहीं आता !
जीवन की भूल भुलैया में ,
कोई खेवैया नज़र नहीं आता !
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