Thursday 26 November 2015

चिर निद्रा

गर्दिश में जब हो जाएँगे ,
सपनों के दुनिया में खो जाएँगे !
होगी सारी यही दुनिया ,
बस हम तुम सो जाएँगे !

कोई लाख जगाले हमें  ,
मैं फिर न आ पाउँगा !
अब के जो सोया तो ,
फिर कभी न उठ पाउँगा !

ज़िंदगी भर जो सोने कीं ,
कोशिश की थी मैंने !
आज आइ हैं चिर निद्रा ,
मुझे तू फिर न जगाना !

ज़िंदगी भर जिस मंज़िल के पीछे चला ,
क्या पता था वो कहा था !
आज आइ जब मौत गले मिलने ,
तब पता चला वो मंज़िल यही था !

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