Monday 31 August 2015

अब कोई नही हमराही मैं और बस मेरी परछाई

अब कोई नही हमराही ,

मैं और बस मेरी परछाई !

दूर दूर तक यादों का सागर ,

और साथ बस परछाई !

कुछ दूर साथ वो चले तो थे ,

हाँथो में लेकर हाँथ बढ़े तो थे !

वख्त बदला तो वो भी बदली ,

साथ बची मेरे परछाई !

एक यादों का बादल हैं ,

उसमे भी तू हरजाई हैं !

और कोई नही साथ मेरे ,

साथ मेरे परछाई हैं !

जो कभी अपने थे ,

वही आज सपने है !

साथ और कोई नही ,

बस मैं और मेरी परछाई हैं !

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