Monday 24 August 2015

जालसाज हसीना

पहेले दोस्ती का हाथ बढाती ,
फिर ये जाल बिछाती !
कर के चन्द दोस्ती की बाते ,
फिर ये हमे फसाती !
चन्द मीठे लफ़्ज बनाकर ,
ये दोस्त हमे बनाकर !
फिर चुपके से ये ,
अपना हाथ छोड़ जाती !
है ये बहोत ही शातिर ,
पहेले तुमको अपने साथ मिलाती !
फिर थोडा सा प्यार जताकर ,
हसता खेलता घर तोड़ जाती !
बच के रहना तुम मेरे दोस्तों ,
ये उल्लू सरे आम बनाती !
अपनी इज्जत दोस्तों में लुटाकर ,
घरपर सती सावित्री बन जाती !

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