Friday 21 August 2015

फिर तेरी मुझे याद आई

ये मौसम ये तन्हाई ,
फिर वही दर्द ले आई !
ऐसे में ओ सनम ,
फिर तेरी मुझे याद आई !

जब याद आई तेरी तो ,
नयनों से बहे आँसू !
जितना रोका मैंने ,
उतनी और तेरी याद आई !

बस अब यादों का सावन है ,
और नयनों की बारिश !
मिलो हैं सुनसान यहा ,
और सुनी राहे सारी !

दूर तलक न कोई राह है ,
और न कोई जीवन साथी !
साया भी अब साथ देता नही ,
वो भी है हरजाई !

न कोई अब राज़दार है ,
न कोई हैं साथी !
सुनसान खड़ा राहों पर ,
बीत रही ये जिंदगानी !

वख्त के पन्नों में तू छुपी कहा ,
ढूँढू मै तुझको कहा कहा !
अब तो आजा ,
बुला रहा है मनमीत तेरा !

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