Sunday 23 August 2015

हुस्न की मलिक

दिन के उजालों में खो जाती हो ,
रात को तुम निखर जाती हो !
मदहोशी का यु आलम हैं ,
देखते ही मुझको खिल जाती हो !

हुस्न की तुम मलिका हो ,
रातों की तुम रानी !
औरो को जो बहका दे ,
तुम हो वो मस्त शबाब !

उफ़ ये तेरा चमकता बदन ,
तुम रातों में चांदनी रात !
तुमसे ही हैं रौशन यहा ,
तुम ही सूरज तुम ही चाँद !

तेरी मैं क्या तारीफ करू ,
तू निखरता हुवा शबाब !
बिन पिए ही चढ़ जाए ,
तुम हो वो शराब !

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