Saturday 12 December 2015

किसी की आँखो में हमने वो शर्मो हया का पर्दा नहीं देखा

आज कल आँखो से दर्द का वो समंदर नहीं बहेता ,
सब देखते हैं हुस्न को कोई दिल के अंदर नहीं झाँकता !

बिछाकर प्रेम जाल वो फाँस लेते हैं ,
फिर चूमकर होंठों को सारे कपड़े उतार लेते हैं !

प्यास होती हैं नज़रो में जिस्म की ,
किसी की आँखो में हमने वो शर्मो हया का पर्दा नहीं देखा !

प्यार का झाँसा देकर जिस्म से खेल लेते हैं ,
 दो बातें प्यार से बोलकर वो हमें बहेला फुसला लेते हैं !

मुस्कुरा देते हैं हम रोज़ उनकी ये बेवफ़ाई देखकर ,
और लोग कहेते हैं हमसा कोई बेवफ़ा नहीं देखा !

उनकी वफ़ा का सब मिसाल देते हैं ,
शायद उनसब ने तेरे हाँथों में छुपा वो ख़ंजर नहीं देखा !

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